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संपादकीय
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जल भी है फिर कल भी है, निश्चय के बादल भी है। बढ़ो सहेजो उसे यहाँ , फिर पानी सम्बल भी है; कल था अपना कल भी है, नदियाँ की कल कल भी है। अमृत है उसको जानो, सब बातों का हल भी है। भागीरथ - संकल्प अगर, तो फिर गंगा जल भी हैं। पावनता की अलख लगे वह स्वच्छ निर्मल भी है।
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