जल भी है फिर कल भी है,
निश्चय के बादल भी है।
बढ़ो सहेजो उसे यहाँ ,
फिर पानी सम्बल भी है;
कल था अपना कल भी है
नदियाँ की कल कल भी है।
अमृत है उसको जानो,
सब बातों का हल भी है।
भागीरथ – संकल्प अगर
तो फिर गंगा जल भी हैं।
पवनता की अलख लगे
वह स्वच्छ निर्मल भी है।
– सजल मालवीय